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मिट्टी के तवे बेच कर रोटी की उम्मीद...
-इमरान ज़हीर
मुरादाबाद (उतर प्रदेश) । दो जून की रोटी के लिये लोग क्या क्या नही करते । अपना और बच्चों का पेट पालने के लिए इंसान कुछ भी कर सकता है । कुछ गरीबी से मायूस होकर गलत रास्तों पर चल कर पैसे कमाते है तो कुछ परिवार समेत जीतोड़ मेहनत कर अपना गुजारा करते है । पेट की भूख दूरी और जगह नही देखती, देखती है तो सिर्फ दो रोटी । ऐसे ही एक परिवार से सोमवार को वास्ता पड़ा जो पेट की खातिर तकरीबन 6 सौ किलोमीटर दूर राजस्थान से मुरादाबाद इस उम्मीद से पहुँचा है की उसके गुज़र बसर के लिए यहाँ दो पैसे का प्रबंध हो सकेगा । यह परिवार लोगों को मिट्टी के तवे बेच कर दो पैसे कमाने की कोशिश में लगा है जिससे वह अपने परिवार के साथ अपने मासूम बच्चे की भूख मिटा सके ।
इस परिवार में 4 सदस्य है जिसमे माँ बाप समेत एक 6 वर्षीय बच्ची और एक डेढ़ वर्ष का बच्चा है जो शहर के विकास मंजिल के बाहरी छोर पर रोड किनारे बैठकर मिट्टी के तवे मे हैंडिल लगा कर उसे तैयार करते दिखा । लोग इस अनोखे तवे को देख कर रुके ज़रूर लेकिन खरीदा किसी ने नही । किसी का कहना था कि यह टूट गया तो पैसे बेकार हो जायँगे तो किसी ने कहा कि इसपर रोटी कैसी बनेगी इसका पता नही इसलिए नही ले रहे । लेकिन किसी की भी नज़र यहां उस डेढ़ साल के मासूम पर नही पड़ी जो रोड किनारे इनके साथ एक लाल रंग की चादर में अपनी नींद पूरी कर रहा था । इस परिवार की मेहनत और दो पैसे की मजबूरी किसी को नही दिखी जहां एक मासूम बच्चे को ज़मीन पर सुला कर दो पैसे की खातिर जद्दोजहद की जा रही थी । बच्चे की एक आहट पर माँ उसे थपथपी लगाती और उसे फिर से सुला देती । यह क्रम कई बार चला । इसके बाद वह मां ग्राहक को इसकी खूबी बताने में लग जाती । की शायद उससे कोई इस मिट्टी के तवे को खरीद सके जिसके बाद वह अपने बच्चे के खाने का प्रबंध कर सके ।
क्या हमें ऐसे लोगों से इनका समान खरीदना चाहिए जो खुद दो पैसे के लिए परिवार समेत दर दर की ठोकरे खा रहे है । बेशक हमे ऐसे लोगों का ध्यान रखना होगा जो अपने ज़मीर से कोई सौदा नही करते और मेहनत और ईमानदारी से अपना और अपने परिवार का पेट पालते है । बड़े बड़े शोरूम से सामान खरीदना आज फैशन बन चुका है । लेकिन जिनकी हैसियत शोरूम बनानेे की नही है उन्हें आगे रखने की आज हमे ज़रूरत है, क्या पता हमारी इस पहल से किसी भूखे बच्चे का पेट भर सके साथ ही उस परिवार की मदद हो सके जो दो जून की रोटी के लिए ज़मीर से कोई सौदा न कर कड़ी मेहनत से परिवार चलाते है ।
Writer:zninews(
2017-11-07
)
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